पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भापाओं का वर्गीकरण ६९ शाखा के तीन मुख्य वर्ग होते हैं--गाथलिक, गालिश और ब्रिटानिक । गालिश लुप्त हो गई है परंतु अन्य वर्ग की कुछ भाषाएँ अभी जीवित हैं। जर्मन अथवा स्यूटानिक शाखा, भारोपीय परिवार की बड़ी महत्त्वपूर्ण शाखा है। इसका प्रसार और प्रचार दिनोंदिन बढ़ रहा है इस शाखा की अँगरेजी भाषा विश्व की अंतर्राष्ट्रीय भाषा हो रही है। इस शाखा का इतिहास भी बड़ा मनोहर तथा शिक्षापूर्ण है। प्राचीन काल से ही इस शाखा की भाषाओं में संहित से व्यवहित होने की प्रवृत्ति रही है और इन सभी भाषाओं में प्राय: आद्यक्षर घर वल' का प्रयोग होता है केवलं स्वीडन की भाषा स्वीडिस इसका अपवाद है। उसमें स्वर का प्रयोग होता है। इन सब भाषाओं की सबसे बड़ी विशेषता है उनका निराला वर्ण-परिवर्तन । प्रत्येक भाषाविज्ञानी ग्रिम- सिद्धांत से परिचित रहता है। वह इन्हीं भाषाओं की विशेषता है। पहला वर्ण-परिवर्तन प्रागैतिहासिक काल में हुआ था । श्रिम-सिद्धांत उसी का विचार करता है। इस वर्ण-परिवर्तन के कारण ही जर्मन-शाखा अन्य भारोपीय शाखाओं से भिन्न देख पड़ती है। दूसरा वर्ण-परिवर्तन ईसा की सातवीं शताब्दी में पश्चिमी जर्मन भाषाओं में ही हुआ था और तभी से लो-जर्मन और हाई-जर्मन का भेद चल पड़ा। वास्तव में हाई-जर्मन जर्मनी को उत्तरी हाइलैंड्स की भापा थी और लो- जर्मन दक्षिण जर्मनी की लो-लैंड्स में बोली जाती थी। इस शाखा के दो मुख्य विभाग होते हैं. पूर्वी जर्मन और पश्चिमी जर्मन । पूर्वी की अपेक्षा पश्चिमी जर्मन का प्रचार अधिक है; उसमें अधिक भाषाएँ है। पूर्वी जर्मन में गाथिक और नार्थ जर्मन (स्कैंडिनेविचन ) भाषाएँ हैं। पश्चिमी जर्मन के दो विभाग हाई और लो जर्मन के अंतर्गत आधुनिक जर्मन और आधुनिक अँगरेजी भाषा क्रमशः आती हैं। इटाली की लैटिन प्रधान साहित्यिक भाषा होने से इस शाखा का नाम लैटिन शाखा अथवा लैटिन भाषा-वर्ग है। कैल्टिक के समान इस शाखा के भी उचारण संबंधी दो भाया-वर्ग होते इटाली शाखा हैं-प-वर्ग और क-वर्ग; अर्थात् जहाँ प-वर्ग को }