पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/८३

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भापा-विज्ञान और व्याकरणा-संबंधी विकार देख पड़ते हैं वैसे ही विकार भारतीय प्राकृतों के इतिहास में भी पाए जाते हैं, अर्थात् लैटिन से तुलना करने पर जो ध्वनि और रूप के परिवर्तन उससे निकली इटालियन, फ्रेंच आदि में देख पड़ते हैं, वैसे ही परिवर्तन संस्कृत से प्राकृतों तथा आधुनिक भाषाओं की तुलना करने पर दृष्टिगोचर होते हैं। जैसे लैटिन और संस्कृत में, जहाँ दो विभिन्न व्यंजनों का संयोग मिलता है वहाँ इटाली और प्राकृत में समान व्यंजनों का संयोग हो जाता है। उदाहरणार्थ-लैटिन का सेप्टेम् (Septem) और ऑक्टो (Octo) इटाली में सेत्ते (Sette) और ओत्तो (Otto) हो जाते हैं उसी प्रकार संस्कृत के सप्त और अष्ट पाली में सत्त और अट्ट हो जाते हैं । इसी प्रकार की अनेक समानताओं को देखकर विद्वान् लोग जहाँ कहीं भारतीय देशभाषाओं के संबद्ध इतिहास की एकाध कड़ी टूटती हुई देखते हैं और लिखित साक्षी का अभाव पाते हैं, वहाँ उपमान के बल से उसकी पूर्ति करने का यत्न करते हैं। उनके उपमान का आधार प्रायः यही रोमांस वर्ग का इतिहास हुआ करता है। श्रीक भाषा का प्राचीनतम रूप होमर की रचनाओं में मिलता है। होमर की भाषा ईसा से लगभग १००० वर्ष पूर्व की मानी जाती है । उसके पीछे के भी लेख, ग्रंथ और शिला-लेख ग्रीक भाषा आदि इतनी मात्रा में उपलब्ध होते हैं कि उनसे ग्रीक भाषा का साधारण परिचय ही नहीं, उसको विभाषाओं तक का अच्छा ज्ञान हो जाता है। अत: ग्रीक भाषा का सुंदर इतिहास प्रस्तुत हो जाता है और वह भापा-विज्ञान की सुंदर सामग्री उपस्थित करता है। ग्रीक भाषा में संस्कृत की अपेक्षा स्वर-वर्ण अधिक हैं, ग्रीक में संध्यक्षरों का वाहुल्य है, इसी से विद्वानों का मत है कि भारोपीय ग्रीक और संस्कृत भापा के स्वरों का रूप ग्रीक में अच्छी तरह सुरक्षित है, पर संस्कृत की अतुल व्यंजन संपत्ति ग्रीक को नहीं मिल सकी। मूल भाषा के व्यंजनों की रक्षा संस्कृत ने ही अधिक की है। दोनों भाषाओं में एक घनिष्ठ समानता यह है कि