पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भापाओं का वगाकरण ७३ दोना ही सस्थर भाषाएँ हैं, दोनों में स्वर (गीतात्मक स्वरावात ) का प्रयोग होता था और पीछे से दोनों में बल-प्रयोग का प्राधान्य हुआ। रूप-संपत्ति के विपथ में यद्यपि दोनों ही संहित भापाएँ हैं, तथापि संस्कृत में संज्ञाओं और सर्वनामों के रूप अधिक हैं; काल-रचना की दृष्टि से भी संस्कृत अधिक संपन्न कही जा सकती है, पर श्रीक में अव्यय, कृदंत, क्रियार्थक संज्ञाएँ आदि अधिक होती हैं। संस्कृत के परस्मैपद और आत्मनेपद के समान ग्रीक में भी एक्टिव (Active) और मिडिल (Middle) वाइस (Voice) होते हैं। दोनों में द्विवचन पाया जाता है, दोनों में निपातों की संख्या भी प्रचुर है और दोनों में समास रचना की अद्भुत शक्ति पाई जाती है। ग्रीक भाषा के विकास की चार अवस्थाएँ स्पष्ट देख पड़ती हैं--- होमरिक (प्राचीन ), संस्कृत और साहित्यिक, मध्यकालीन और आधुनिक । मध्यकालीन ग्रीक भाषा के दो उपवर्ग होते हैं। एक उपवर्ग में डोरिक, एओलिक, साइपोरियन आदि विभाषाएँ आती हैं और दूसरे में आयोनिक और एटिक । प्राचीन आयोनिक में होमर ने अपनी काव्य-रचना की थी। उसके पीछे श्रार्कीलोकस, मिमनर्मस अादि कत्रियों की भापा मिलती है। इसे मध्यकालीन आयोनिक कहते हैं। आयोनिक का अंतिम रूप हेरोडोटस की भाषा में मिलता है। यह नवीन आयोनिक कहलाती है। इससे भी अधिक महत्व की विमापा है एटिक । साहित्यिक ग्रीक की कहानी वास्तव में इसी एटिक विभापा की कहानी है। उसी विभापा का विकसित और वर्तमान रूप आधुनिक ग्रीक है । क्लैसिकल (प्राचीन) और पोस्ट क्लैसिकल (परवर्ती) ग्रीक (१) पेगन (Pagon) और (२) निओ-हैलेनिक (अर्वाचीन ) तथा आधुनिक भापा (३) क्रिश्चियन ग्रीक कही जा सकती हैं। प्राचीन साहित्यिक ग्रीक वह है जिसमें एस्काइलस, सोफोक्लीज, प्लेटो और अरिस्टाटिल ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ लिखे हैं। इसका काल ईसा के पूर्व ५००-३०० माना