पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/९०

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७७ भाषाओं का वर्गीकरण और अब धीरे धीरे वह लुप्त होती जा रही है। पोलाविश अव बिलकुल नष्ट हो गई पर पोलिश एक सुंदर-साहित्य-संपन्न भाषा है । श्रार्मेनियन भाषा में प्राचीन साहित्य होने के चिह्न मिलते हैं। इसके प्रामाणिक लेख ग्यारहवीं शताब्दी से पाए जाते हैं । इस समय आर्मेनियन शाखा की प्राचीन आर्मेनियन आज भी कुछ ईसाइयों में व्यवहृत होती है। अर्वाचीन आर्मेनियन की दो विभापाएँ पाई जाती हैं जिनमें से एक एशिया में और दूसरी यूरोप में अर्थात् कुस्तुनतुनिया तथा व्लैक सी (काला सागर) के किनारे किनारे बोली जाती है । फ्रीजियन भी इसी आर्मेनियन शाखा से संबद्ध मानी जाती है । मौजियन के अतिरिक्त लिसियन और थेसियन आदि कई अन्य भारोपीय भापात्रों के भी अवशेष मिलते हैं जो प्राचीन काल वाल्टो-स्ताहिक शाखा से आर्मेनियन का संबंध जोड़ने. वाली थीं । आर्मेनियन स्वयं स्लाहिक और भारत-ईरानी ( आर्य ) परिवार के बीच की एक कड़ी मानी जा सकती है। उसके व्यंजन संस्कृत से अधिक मिलते हैं और स्वर ग्रीक से । उसमें संस्कृत की नाई ऊष्म वर्णों का प्रयोग होता है अर्थात् वह शतम्-वर्ग की भाषा है। भारोपीय परिवार में आर्य शाखा, साहित्य और भापा दोनों के विचार से, सबसे प्राचीन और आप है । कदाचित् संसार के इतिहास आर्य अर्थात् भारत- में भी इससे प्राचीन कोई भाषा-परिखार जीवित ईरानी शाखा अथवा सुरक्षित नहीं है। इसी शाखा के अध्ययन ने भापा-विज्ञान को सच्चा मार्ग दिखाया था और इसी के अध्ययन से भारोपीय भाषा के मूल रूप की कल्पना बहुत कुछ संभव हुई है। इसमें दो उप-परिवार माने जाते हैं-ईरानी और भारतीय । इन दोनों में आपस में बड़ा साम्य है और कुछ ऐसी सामान्य विशेषताएँ हैं जिनसे वे इसके अन्य उप-परिवारों से भिन्न माने जाते हैं । मुख्य विशेताएँ निम्नलिखित हैं- (१) भारोपीय मूल भाषा के अ, ए और ओ के हस्त्र और दीर्घ