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७६ भाषा-विज्ञान लैटो-स्लाहिक भी कोई वहुत प्राचीन शाखा नहीं है। इसके दो मुख्य वर्ग हैं--लैटिक और स्लाहिक । लैटिक (या वाल्टिक) वर्ग में लैटो-स्लाहिक शाखा तीन भाषाएँ आती हैं जिनमें से एक (ओल्ड- प्रशियन) सत्रहवीं शताब्दी में ही नष्ट हो गई है। शेष दो लिथुआनियन और लैटिक रूस के कुछ पश्चिमी प्रदेशों में आज भी बोली जाती हैं। इनमें से लिथुआनियन सवसे अधिक आप है। इतनी अधिक आप कोई भी जीवित भारोपीय भाषा नहीं पाई जाती। उसमें आज भी esti (सं० अस्ति), gyyas ( सं जीवः ) के समान आर्ष रूप मिलते हैं और उसकी एक विशेपता यह है कि इसमें वैदिक भापा और प्राचीन ग्रीक में पाया जानेवाला स्वर अभी तक वर्तमान है। स्लाहिक अथवा स्लैबोनिक इससे अधिक विस्तृत भापावर्ग है। उसमें रूस, पोलैंड, बुहेमिया, जुगोस्लाहिया आदि की सभी भाषाएँ आ जाती हैं। रूसी भाषाओं में 'बड़ी रूसी' साहित्यिक भापा है। उनमें साहित्य तो ग्यारहवीं सदी के पीछे तक का मिलता है, पर वह टकसाली और साधारण-भाषा अठारहवीं शताब्दी से ही हो सकी है। श्वेत रूसी में पश्चिमी रूस की सब विभाषाएँ आ जाती हैं; और छोटी रूसी में दक्षिणी रूस की विभाषाएँ आ जाती हैं । चर्च स्जाहिक का प्राचीनतम रूप नवीं शताब्दी के ईसाई साहित्य में मिलता है, उसकी रचना ग्रीक और संस्कृत से बहुत मिलती है। इसका वर्तमान रूप बल्गेरिया में बोला जाता है। पर रचना में वर्तमान बल्गेरियन सर्वथा व्यवहित हो गई है और उसमें तुर्की, ग्रीक, रूमानी, अल्बेनियन आदि भाषाओं के अधिक शब्द स्थान पा गए हैं। सर्वोक्रोत्सियन और स्लोद्धेनियन जुगोस्लाह्रिया में बोली जाती हैं । इनका दसवीं ग्यारहवीं शताब्दी तक का साहित्य भी पाया जाता है । जेक और स्लोव्हाकिया जेकोस्लो- व्हाकिया के नये राज्य में बोली जाती हैं। स्लोव्हाकि जेक की ही विभाषा है । सोरेवियन (वेंडी) प्रशिया के एकाध लाख लोग वोलते हैं