पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१०२

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वली की 'हिंदी' गर द लछमन तेरा है राम बले, ए सजन तू किसी का राम नहीं ! तथा बात नया वफादार है कि मिलने में, दिल सों सब राम राम करते हैं। वन वन में फिरते कृष्णा की भी एक झाँकी ले लीजिए- तेरे बिन रात दिन फिरता हूँ बन-बन किशन के मानिंद अपस के मुख उपर रख कर निगह को बाँसुली अस्त्रियाँ । कृषा की वंशी के साथ ही साथ अजुन के बाण का भी ध्यान कीजिए- जांधा जगत के क्यों न डरै नुकसो ऐ सनम ! तरकश में तुझ नयन के हैं अर्जुन के बान आज। कृष्ण या अजुन का गुणगान करना बहुत कुछ सामान्य है, पर वासुक्ति को पाताल से बुला लाना एक खास अदब की. है। गौर कीजिए, वत्ती किस हिंदो ढंग से वासुकि को उठाकर चलाते हैं-- क्लो तुझ जुल्म की गर लेहसाज़ी का वयाँ बोले चले पाताल सो बासुकि सौ पेच बो ताब सों उठकर । यही नहीं, बली ने हिंदी राजा-प्रजा के संबंध को भी दिखा दिया है और इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया है कि राजा उपज का कितना भाग लेता था। उनका कहना है- तन के मुल्क में ए 'बली तुझ इश्क के हाकिम ने आ दिल की रैयत सो छटा लेकर चुकाया दाम दाम । चली के इस कथन के महत्व को समझने के लिये भगवान् मनु का यह निर्देश कितना सटीक है-