पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१०३

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भाषा का प्रश्न नक श आददीताथ षड्भागं द्रु मांसमधुसर्पिषाम् । गन्धौषधिरसानां च पुष्पमूलफलस्य च ।। ७-१३१ । हिंदी पर्वो और उत्सवों से बली को कितना उस था, तनिक इसे भी देख लें- तेरे जुल्फों के हलक में दिसे यों रुख रोशन। कि जैसे हिंद. के भीतर लगैं दीवे दिवाली में || तीर्थ-स्थानों की महिमा पर भी ध्यान दीजिए और टुक गौर कीजिए कि वली किस तरह उन्हें याद करते हैं- कूच ए-यार ऐन कासी है, जोगी दिल वहाँ, का. बासी है । पी के बैराग की उदासी सों, दिल भी बैरागी व उदासी है || ऐ सनम तुझ जबीं ऊपर यह खाल हिंदू-एं हरद्वार-बासी है जुल्फ तेरी है मौज जमना को पास तिल उसके ज्यों संन्यासी है ॥ कहाँ तक कहें ? वली हिंद पर इतने लट्ट हैं कि- 'वली तेरी गली को देख बोला यही है हिंद और कश्मीर व काबुल । यह है उर्दू के बावा आदम कहे जानेवाने जनाव वली की हिंदी-लगन और यह है. 'कुल्लियात वली' के संपादक जनाव अहसन साहब' मारहरवी की हिंदी की जानकारी- 1 १ जनाब अहसन साहब भारद्रवी वली के उद्धारक और उर्दू के प्रकोंड़ पंडित गिने जाते हैं 1. 'कुल्लियांत बली' का प्रकाशन सन् १६२७ ईसवी में मौलाना और अब डाक्टर अब्दुल हक साहब : 'मुल्की ज़बान' की हिमायती हस्ती के हाथ हुआ है। वही डाक्टर जैसे