पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

उर्दू की उत्पत्ति नीति, प्रमाद अथवा भ्रमवश 'उर्दू के व्यवहार को जो व्यापक रूप दिया जा रहा है उससे सत्य के क्षेत्र में कैसी धाँधली मची है, तनिक इसे भी देख लें। शाह अब्दुल कादिर ने कुरान शरीफ का एक अनुवाद किया और उसकी भाषा के संबंध में लिखा- "अब कई बातें मालूम रखिए। अञ्चल यह कि इस जगह तरजुमा ल फ्जवल फ्ज जरूर नहीं, क्योंकि तरकीब हिंदी तरकीव अरबी से बहुत बईद है। . अगर वईना वह तरकीब रहे तो माने माहूम न हों। दूसरे यह कि इसमें जवान रेखता नहीं बोली बल्कि हिंदी मुतारा ता अवाम को वेतकल्लुफ़ दरिया फ्त हो।" शाह साहब के इस कथन पर मौलाना अब्दुल हक ने ध्यान दिया और कहा- "शाह साहब ने यहाँ रेखते और हिंदी मुतारफ़ में जो फ़र्क किया है वह काविल गौर है। हिंदी मुतार से वही ज़बान मुराद है जिसे आजकल हिंदुस्तानी से ताबीर किया जाता है। इस तरजुमे के देखने से मालूम होगा कि हिंदुस्तानी जवान किसे कहते हैं। . १-उर्दू (अंजुमन तरक्की उर्दू की त्रैमासिक पत्रिका, औरंगाबाद, दकन) जनवरी सन् १६३७ ई०, पृ० १७ ।