पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१०९

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सापाका प्रभ "What fine Urin verse I tavo: Written, but no one in the-o parts understands me.” कहने का तात्पर्य यह कि मौलाना हक तथा बाक्टर वेली दोनों ही महाशय इस रेखता और हिंदी मुतारक की गुत्थी को सुलझाने में असमर्थ रहे हैं और 'उदू' शब्द की माया में फंस गए। रेखता और उर्दू को सामान्यतः एक ही ख्याल किया जाता है। पर दोनों के प्रयोग तथा स्वरूप में कुछ भेद है। हम उर्दू को चाहें तो रेखत्ता कह सकते हैं ! . पर रेखला को उर्दू कहना प्रमाद, भ्रम था अज्ञान होगा, ज्ञान कदापि नहीं । 'हिंदी' का प्रयोग फारसी-अरबी के मुकाविले में रेखता और उर्दू के लिये भी होता रहा है, पर अब इस अर्थ में यह अधिक चालू नहीं है। फिर भी जहाँ कहीं रेखता' या 'उर्दू से विभेद दिखाने के लिये इसका प्रयोग किया गया है वहाँ इसका अर्थ 'रेखता' या 'उदू नहीं किया जा सकता, 'हिंदुस्तानी' करने में आपत्ति नहीं। हिंदुस्तानी वस्तुतः हिंदी का पर्याय है और आज चोलचाल या व्यवहार की हिंदी के लिये प्रायः प्रयुक्त भी होता है। यह हिंदुस्तानी खालिस (खड़ी, ठेठ) और मुसल- मानी से भिन्न एक दूसरी चीज है जिसमें दोनों का समन्वय है. जो किताब की नहीं, लेन-देन या व्यवहार की भाषा है। इसकी जगह उर्दू को विठा देना नादानी है, न्याय नहीं । हाँ, तो कहना यह था कि प्राचीन ग्रंथों पर विचार करते समय इस बात पर बराबर ध्यान रखना चाहिए कि भाषा के लिये उसमें कौन-सा शब्द प्रयुक्त है, रेखता, उर्दू, हिंदी अथवा