पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/११२

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उर्दू की उत्पत्ति अर्थात् 'बादशाह हिंदोस्तान के कैंप या पायः तख्त की जवान'। ऊपर के अवतरणों से इतना तो स्पष्ट हो गया कि 'उर्दू जवान' 'उर्दू की जवान' से भिन्न है। उसका वाचक नहीं, उससे न्यारी है। अब देखना यह चाहिए कि 'उदृ की जवान' का इतिहास क्या है। मीर असन देहलवी का विश्वविख्यात कवन लीजिए--- "हकीकत उर्दू की जवान की बु.जुर्गों के मुँह से यों सुनी है कि दिल्ली शहर हिंदुओं के नजदीक चौजुगी है। उन्हीं के राजा प्रजा कदीम से वहाँ रहते थे और अपनी भाखा बोलते थे। हजार बरस से मुसलमानों का अमल हुआ। सुल्तान मह- मूद गजनवी आया। फिर शोरी और लोदी वादशाह हुए । इस आमदरत के वाइस कुछ जवानों ने हिंदू-मुसलमानों की आमेज़िश पाई। आखिर अमीर तैमूर ने, जिनके घराने में अब तक जासनिहाद सल्तनत का चला जाता है, हिंदोस्तान को लिया। उनके आने और रहने से लश्कर का. बाजार शहर इस बास्ते शहर का बाजार उर्दू कह- लाया ......जब अकबर बादशाह तख्त पर बैठे तब चारों तरफ के मुल्कों से सब कौम कदरदानी और फैजरसानी इस खांदान लासानी की सुनकर हु.जूर में आकर जमा हुए। लेकिन हर एक की गोबाई और बोली जुदा जुदा थी। इकट्ठे होने से में दाखिल हुआ। १- बागोवहार भूमिका, पृ० ४ ( न० कि० प्रेस)।