पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/११५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भापा का प्रश्न कभी कभी अपने कलाम पर नाज होता है और कभी कभी काई साब इस ताज: 'जवान' को अपनी 'मादरी जबान' भी कह जाते हैं। उनका गुमान होगा कि उनके भी बाप-दादे खुशवयान' गिने गए होंगे। पर सैयद इंशा का साफ फतवा है. "बुद्धिमानों से यह बात छिपी नहीं है कि हिंदुओं ने बोल- चाल, चालढाल, खाना और पहनना इन सब बातों का सलीका मुसलमानों से सीखा है।" पाठक हैरान न हों। यह ईशा का निजी ख्याल नहीं है। अभी उस दिन मुसलिम संस्कृति के एक उदार तथा प्रकांड पंडित ने कहा है- "खाना किस मुल्क में पकाया और नहीं खाया जाता, मगर हिंदोस्तान की नाअतपसंद तबीयत मिट्टी की हाँडियों और केले के पत्तों से आगे नहीं बढ़ी।...... मुसलमानों ने जब यहाँ १.-"वर साहेब तमीजान पाशोदा नेस्त कि हिंदुबान सलीका दर रफ़्तार व गुफ़्तार व खाराक व पोशाक अज़ मुसलमानान याद गिरफ्ता अन्द । (दरिया-ए-लताफत, वही, दुरदान-ए-दोम पृ०६)। २--अलीगढ़ मैगजीन, अलीगढ़, अक्टूबर सन् १९३३ ई० पृ०७ । ३-शब्दों में राष्ट्र का सच्चा इतिहास छिपा होता है। उनके जीते जी राष्ट्र मर नहीं सकता। यही कारण है कि विजित जातियों के शब्दों तथा भाषायों के मारने की पूरी पूरी चेष्टा की जाती है और उन पर अपनी निजी भाषा को छाप लगाई जाती है। इससे नीतिकारों को सफलता तो मिल जाती है पर सत्यनिष्ठों का सर्वस्व छिन जाता है <? ।