पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/११६

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१११ उर्दू की उत्पत्ति सादम रखा तो अपने पूरे तमद्दुन व सुआशिरत, साज वो सामान और अपनी इस्तलाहात वो ईजादात को लेकर यहाँ बारिद हुए और इन सबके लिये नाम वो इस्तलाहात वो अल्फाज भी अपने साथ लाए। और चूँकि यह हिंदोस्तान में बिलकुल नई चीजें थीं इसलिये हिंदोस्तान की बोलियों में इनके मरादफात की तलाश वेकार थी, और वही अल्फाज़ हिंदुस्तान में रायज हो गए।" हम उन चीजों के व्यारे में समय विताना व्यर्थ समझते हैं। केवल इतना निवेदन कर देना चाहते हैं कि हम आज भी वही गिने जाते हैं जो सैयद इंशा के जमाने में गिने जाते थे। किसी बात में भी हमारा विश्वास नहीं किया जा सकता। 'उर्दू तो एक अनोखी चीज है और 'यारों को भी 'आते आते आती है। तभी तो दाग चेतावनी देते हैं- . घोर अंधकार में उनकी प्रतिमा ढोकरें खाती और भ्रमजाल में फंसकर बालपती रह जाती है। ठीक यही दशा इस दावे में है। साना कि देग, देगची, प्याला और बाबरची मुसलमानों के साथ आए । बटलोई, बटुला, कटोरा, लोटा और हेडा का टवर्ग कहाँ से ग्राया ? अरबी, फारसी या नुकीं से ? करें क्या, सूपक या सूपकार ( सुभार ) भी तो बहुत पुराना है। मिट्टी से बागे', कहाँ, तक आगे बढ़ी थी इसके लिये यह श्लेाक पयांत है। इसमें शुद्धि का भी. विधान है- अंभसा हेमाप्यायःकात्यं शुष्यति भस्मना । अम्लत्तानं च रत्वं च पुन:पाकेन मुरामयम् }}