पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/११९

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भाषा का प्रश्न शाह हातिम ने हिंद के मिरजाओं और फसीह वक्ताओं को लिया था। सैयद इंशा ने दोनों की जगह खुशवयानान' को दे दी। होना भी यही था। शाह हातिम के समय (सन् १७५५ ई०) दिल्ली दरवार की कुछ प्रतिष्ठा थी, इसलिये मिरजा लोगों को जगह मिल गई। इशा के सामने दिल्ली का दरबार नहीं, लखनऊ की मजलिस थी। फिर उन्हें मिरजा लोग कहाँ दिखाई पड़ते ? ध्यान देने की बात यह है कि जिसे यार लोग आज भासफहम और आमपसंद या बोल-चाल की भाषा कहते हैं उसका मूलरूप भी कभी आमपसंद न था। याद रहे, शाह हातिम ने उसे खासपसंद कहा है और इस बात की स्पष्ट घोषणा कर दी है कि वह 'देहलवी नहीं, देहली के कुछ इने- गिने फसीहों और दरवारियों की जवान है। उसमें से आस- पास की जबान और भाका को निकाल फेंका है। बस केवल शिष्टों की वाणी को रख लिया है जिसे समझ तो और लोग भी. लेते हैं पर पसंद कुछ चुने हुए लोग ही करते हैं। गर्भ की उर्दू यानी उर्दू-ए-मुअल्ला की आमपसंद अथवा हमारी देशभाषा पर पहली चढ़ाई है जिसे उर्दू वाले 'तराश-खराश' और न जाने कितने मीठे और भड़कीले नामों से याद करते हैं। क्या आप यह जानना चाहते हैं कि उसी समय भाषावाले किस ओर जा रहे थे ? उनकी भी सुन लीजिए ! भिखारीदास' हिंदी भाषा के एक प्रतिष्ठित कवि तथा आचार्य हैं। उनका आदेश है.. १-काव्यनिर्णय, भाषा-लक्षण।