पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१२०

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सहज पारसी उर्दू की उत्पत्ति प्रजभाषा भाषा रुचिर कहै नुमति सब कोय । मिले संस्कृत पारस्यो पे अति प्रगट जु होय ।। ब्रज मागधी मिले अमर नाग यवन भावानि । हूँ मिले पट विधि कहत बखानि ।। यह है हमारा आदर्श और यह है हमारे आचार्य का आदेश। यह आदेश हमें सन् १७४६ ई० में मिला था। हमारी इन उदारता, इस सदाशयता का उत्तर मिलता है. यह नहीं कि 'मिले संस्कृत हिंदियौ पै अति प्रगट जु होय' अलिक ठीक इसके उलटे । ननिक सुन तो लीजिए--- "सिवाय श्राँ, ज़बान हर दयार, ता बहिंदवी, कि आँ रा भाका गोयंद मौकूफ नमूदः ।। अच्छा, कर ले चलो, देखें हिंद में रहकर हिंदवी को कहाँ तक मौकूफ और मतरूक करते हो। कभी तो गुमराही से ठोकर खाकर ठीक मार्ग पर आओगे और अपने चेहरे का महा दाग छुड़ाओगे। शाह हातिम के दीवानजादे की जवान को जान-बूझकर हमने गर्भ की उर्दू कहा है। कारण, उर्दू अभी पैदा नहीं हुई थी। जवान में काफी हिंदवीपन था। उसके रहते हुए उर्दू का नाजिल होना दुशवार था। हातिम को जवान कुछ चुने हुए लोगों की जवान थी। उनके मुँह से कभी कभी हिंदी शब्द निकल पड़ते थे और जवान को गंवारी बना देते। निदान जवान पर फारसी का गहरा रंग चढ़ाया जाना शुरू हुआ। यह मर्ज यहाँ तक बढ़ा कि सौदा को. जिन्हें कुछ भाका ने प्रेम