पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा का प्रश्न था, खला और उन्होंने मजहर वगैरह को टोका। उनसे पहले ही शाह मुबारक आवरून एक नसीहत की थी लेकिन यारों ने उस पर अमल करना अपराध समझा नसीहत यह थी- वक्त जिनका रेखते की शायरी में सफ, है उन सते कहता हूँ बूझो हर्फ मेरा ज़म है। जो कि लाए रेखते में फारसी के जेल व इफ लगो हुँगे फल, उसके रेखते में ही है । सौदा मामूली आदमी नहीं थे, बदगुमानों की अच्छी तरह मरम्मत कर सकते थे। उन्होंने मियाँ मजहर पर यह फवती कसी-- मज़हर का शेर फारसी और रेखते के बीच, सौदा यकीन जान कि. रोड़ा है बार का । श्रागाह फारसी तो कहें उसको रेखता, वाकिफ़ जो रेखते के ज़रा होवे ठाट का। सुनकर वह यह कहे कि नहीं रेखता है यह, और रेखता भी है तो फीरोजशाह की लाट का । सौदा को इतने ही से संतोष नहीं होता। उनको संक्षेप में कहना पड़ता है- अल्किस्सा. इसका हाल यही है जो सच कहूँ, कुत्ता है धोबी का कि न घर का न घाट का। यकीन रहे यदि सौदा आज होते तो आज की जबान को इससे कुछ अच्छा न कहते। शायद उसे चमगादड़ बना देते ।