पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१३८

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उर्दू की उत्पत्ति पूरबी थे। उन्हें जवान का इतना नाज क्यों हुआ कि पटना से भाग पड़े। उनके पिता भी तो देहलवी न थे बल्कि महज पंजावी थे। उनको इस प्रकार का जवान पर दावा क्यों हुआ ? · बात यह है कि अपनी जबान को फारसी के रंग में उन्होंने इतना रेंग लिया था कि यार लोग उस पर लट्टू हो गए थे। उन्हें उर्दू-ए-मुअल्ला. की सुधि न रही। नासिख के कलाम का मुलम्मा उन पर भी हावी हो गया और वे लोग उन्हीं को कामिल उस्ताद मानकर उनकी जवान की पैरवी करने लगे। नतीजा यह हुआ कि लखनऊ, लखनऊ न रहकर 'इस्फहान' हो गया और उर्दू खासी फारसी बन गई। फिर अजीमाबाद से भागते नहीं तो करते क्या? पटना तो इसकहान' होने से रहा। उनकी तारीफ में 'सुस्हर' का इजहार है- "बुलबुले शीराज को है रश्क नासिख का सुरूर । इस्फहान उसने किए हैं कुचः हाये लखनऊ {" कहा जा सकता है कि 'सुरूर' ने शायरी की पिनक में लख- नऊ को इस्फहान बना दिया। कुछ नासिख ने सचमुच ऐसा नहीं कर दिया । ठीक है, पर जरा सौलाना' सलीम जैसे उर्दू के मर्मज्ञ की इस राय पर गौर तो कीजिए और देखिए कि आखिर बात क्या है। उनका कहना है- उसने (नामिन ने) अपने लिये जवान की खास हदूद मुकर्रर कर ली हैं। उनसे कभी बाहर नहीं निकलता। आम ---'उदू ( वही ) जनवरी सन् १९३४, पृ० ५.६ ।