पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१३९

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भाषा का प्रश्न बोलचाल बहुत कम इस्तेमाल करता है। बह एक ऐसी जवान बोलता है जो विलकुल फारसी जवान का अक्स है।" फारसी के पुजारी प्रायः कह बैठते हैं कि फारसी के मेल से कलाम सीठा हो जाता है। जबान से रस टपकने लगता है। लेकिन तब न, जब समझ-बूझकर दिल के इशारे से काम लिया जाय और भाव का ख्याल बना रहे। पर नासिख के यहाँ तो पहलवानी का जोर है। दिमागी कसरत से काम लिया जाता है और अरव-फारस के लुगती लफ्ज शेर के साँचे में ढाले जाते हैं। नतीजा यह होता है कि नासिख की जवान, 'खुश्क और गुट्ठल' हो जाती है। उस समय का रोगी समाज उसी दवा को पीता और अपने को धन्य समझता है। यह सिर्फ इसलिये कि वह बिलकुल फारसी का अक्स है। हिंदोपन का उसमें नाम भी नहीं। संक्षेप में, वही उर्दू है। उसो को नासिख ने उर्दू करार दिया है और उसके प्रचार के लिये हिंदी, रेखता आदि पुराने नामों को एकदम मतरूक कर दिया है। अब आप इसके लिये नासिख के अवश्य कृतज्ञ होंगे कि उन्होंने जनता को धोखे ' १-- नासित्र के दौर को तमहीद में मौलाना आजाद जवान के बारे में लिखते हैं- "जव. ( ज़बान .) पो ख्तः साल होती है तो खुशबू अक उसमें मिलाती है। तकल्लुफ़ के इत्र हूँढकर लाती है। फिर सादगी और शीरी अदाई तो खाक में मिल जाती है। हाँ, दवाओं के प्याले होते. है जिसका जी चाहे पिया करे।"-आबेहयात पृ० ३४० ।