पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१४२

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उद की उत्पत्ति और उनके बजाय अरबी-फारसी के ल.पज मरने शुरू किए । और यही नहीं बल्कि बाज अरबी-फारसी अल्फाज जो व तग युर दरबत या व तसे बुर लफ्ज़ उर्दू में दाखिल हो गए थे, उन्हें भी गलत करार देकर असल सूरत में पेश किया और उसका नाम 'इसलाह जवान' रखा।" मौलाना हक ने साफ नहीं किया कि इस तारीक जमानः' का पेशवा कौन है। पर इतना संकेत कर दिया है कि इसके बाद ही सर सैयद अहमद खाँ का जहूर हुआ है। सर सैयद के पहले नासिख का बोलबाला था। उन्हीं पर यह “तारीक ज़मान:' फिट होता है। उनके पहले इंशा का (मृ० १८१७ ई०) दौर था जिले 'उर्दू जावान का अहदे जाहिलियत का खिताव मिला है। फिर भी इंशा पर मौलाना हक का कथन ठीक नहीं उतरता क्योंकि उनका दावा था- "हर लफ्ज़ जो उर्दू में मशहूर हो गया, अरबी हो या कारली, तुर्की हो या सुरयानी, पंजाबी हो या पूर्वी, अजरूए असल गलत हो या सही, वह लम्ज उर्दू का ल,फ्ज़ है। असल के मुआफिक मुस्तामल है तो भी सही है और अगर खिलाफ असल मुस्तामल है तो भी सही है। उसकी सेहत व अगर १---हिंदी-उर्दू, और हिंदुस्तानी (हिंदुस्तानी एकेडमी, इलाहा- बाद ) पृ० १३.1 २.दरिया-ए-लताफत (वही, मुकदमः पृ० ४ ! हक द्वारा संपादित)। ( मौलाना