पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१४३

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भाषा का प्रश्न १३८. ग़लती उर्दू के इस्तेमाल पर मौतफ हैं। क्योंकि जो कुछ खिलाफ उ है गलत है, गो छासल में वह सही है। और जो कुछ मुआफिक उर्दू है सही है, गो असल में सेहत न रखता हो।” स्पष्ट है कि सैयद इंशा के इस कथन में 'इसलाह जावान का विधान नहीं है। चाहें तो इसे जवान की कसौटी कह लें। सैयद ईशा शाहजहानाबाद के 'उर्दू' की बोली को प्रमाण मानते थे। उसी का उन्होंने यहाँ भी उल्लेख किया है। यदि उनके दौर को 'अहदे जाहिलियत' कहा गया है तो उनके बाद के दौर को तारीक जमाना कहना चाहिए। क्योंकि तराश- खराश का मज बढ़ते बढ़ते अब उससे भी एक नया और हाजीब .

  • इसलाह' का रूप धारण कर चुका था। दुनिया जानती है कि

नासिख ने इस 'इसलाह जबान' का नए सिरे से प्रवर्तन किया और यहाँ तक 'इसलाह' पर जोर दिया कि इसी की । बुनियाद पर अपने को 'नासिख' (मिटानेवाला) सिद्ध किया । इन्हीं की कृपा से सैयद इंशा का उक्त दावा संसृख हुआ और इन्हीं की कोशिशों से इस इसलाही. जवान का नाम उर्दू चल पड़ा। यही वह उर्दू है जो: फारसी की छाया या लाड़ली होने के नाते फारसी की जगह सरकारी जबान हुई और धीरे धीरे सरकार की नादानी और बदगुमानी से मुल्की जबान ( हिंदुस्तानी) के रूप में संसार में ख्यात हुई। सरकार का अपनाना था कि वह रानी बन गई और चारों ओर से हिंदी या भाषा को छोप लिया। इसके बाद जो हिंदी-उर्दू में मुठभेड़ हुई उसकी चर्चा यहाँ न होगी। है

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