पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१४५

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भाषा का प्रश्न वे ही आज उर्दू को मादरी जबान कह रहे हैं। नासिख की. जवान किसी की मादरी जबान नहीं है। वह तो एक खास. टोली की अदबी जवान है। वह मौलाना हक के कथनानुसार 'तारीक जमानः' की 'इखलाही जबान है न कि उस जमाने की बोलचाल या मुल्की जबान । उर्दू के बारे में बार बार यही कहा जाता है कि वह हिंदुओं और मुसलमानों के मेल से बनी हैं। वह हिंद की मादरी या मुल्की जवान है। इतना अर्ज करने के बाद भी यदि इसी तरह का दावा पेश किया जाय तो कहना पड़ेगा कि अब तर्क-वितर्क का जमाना लद गया । अब हुल्लड़वाजों का जमाना है। जो कुछ कहें उन्हें सब छाजा की बात ठहरी। . पर अपने राम को तो यही कहना है कि उर्दू दर हकीकत फारसी की विलकुल अक्स था छाया है वह हिंदुस्तान की अपनी चीज नहीं, फारस या अरव की बरकत है। उसमें शरीक होकर हिंदुओं ने क्या किया इसे भी देख लें। मौलाना हक का उल्लास है- है। एक सज्जन, जो जायस को बोली में बातचीत कर रहे थे और न जाने कितने दिनों से उनके पूर्वज वहाँ के रोड़े बन गए थे, अपनी- जवान फारसी बताते थे। उर्दू से उन्हें संतोष न था। उसको वे हिंदुस्तानी जबान समझते थे । जान पड़ता है, . समय की गति को देखकर जो चेत गए हैं वे तो उर्दू का मादरी जबान कहते हैं नहीं तो अन्य लोग परंपरा के कारण अाज भी फारसी को अपनी जवान समझते हैं। १-उर्दू (वही) जनवरी सन् १६३३ ई०, पृ० १४ ।