पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१५

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भाषा का प्रश्न - प्राकृतों के महत्त्व का प्रधान कारण यह हुआ कि नात्यों में — दो ऐसे पंथ निकल आए जो परंपरा के पालन करने अथवा ब्राह्मण भक्त बनने में उतना प्रसन्न न थे जितना कि अपना मार्ग निकालने या मनुष्य सात्र को निर्वाण दिलाने में मग्न । निदान उन्होंने 'द्विजी' को त्याग 'मानुपी' को अपना लिया और मनुष्यवाणी में 'सद्धर्म' का प्रचार करना उचित समझा। जैनों ने महावीर स्वामी के आदेश पर आर्द्धमागधी तथा बौद्धों ने गौतम के आग्रह से मागधी का पक्ष लिया। जैन संप्रदाय को कभी व्यापक रूप नहीं मिला। वह बहुत कुछ भारत के कोनों में पड़ा रहा और समय समय पर अपना रूप. इधर. उधर दिखाता रहा। संकीर्णता के कारण वह अधिक तत्पर तथा सुरक्षित था। अतएव संस्कृत के वहिष्कार में पहले तो उसे अच्छी सफलता मिली; किंतु बाद में उसे भी संस्कृत को अपनाना ही पड़ा। संस्कृत उसकी भी धर्मभाषा हो गई। पंडितों में 'जैन-संस्कृत' का नाम चालू हो गया। ..... अशोक प्रभृति शासकों के प्रयास से चौद्धमत भारत का मुख्य .. मत हो गया। विदेशों में भी गौतम के सद्धर्म का प्रसार हुआ। आरंभ में 'मागधी' का व्यवहार रहा, पर संप्रदाय की माँग उससे पूरी न हो सकी। मागधी थी भी 'मानवी भाषा' । स्वयं गौतम की प्राकृत वाणी उससे भिन्न थी। मगध में बौद्धमत के विकास के कारण कहीं कहीं मागधी को 'पाली' कह दिया गया है, नहीं तो वस्तुतः वह पाली से सर्वथा भिन्न भाषा-मगध की देश भाषा थी। यही कारण है कि बौद्ध