पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गासी द लासी और हिंदी हैं तो उनकी हैव्यत ऐसी बदल जाती है कि उन्हें बाज़ औकात पहचालना दुशवार हो जाता है।" -( वहीं पृ० ३४८) हिंदी भाषा तथा नागरी लिपि की जिस योग्यता और जिस व्यापकता का परिचय ऊपर दिया गया है वह कितना यथार्थ है, इसके कहने की आवश्यकता नहीं। सभी जानकारों ने एकमत से नागरी के महत्व को माना है और हिंदी की परंपरा का प्रति- पादन किया है। पर काल-चन के प्रभाव से वह दिन भी सामने आ गया, जव गासाद तासी ने दिल खोलकर हिंदी तथा नागरी को कोसा और उर्दू की भरपूर हिमायत की। हिंदी उर्दू के विवाद ने गासा द तासी को उर्दू का कट्टर पक्षपाती बना दिया और यह स्पष्ट कर दिया कि भाषा तथा लिपि के प्रसंग में भी किस प्रकार मजहबी कट्टरता हावी हो सकती है। हिंदी-उर्दू-विवाद के प्रसंग में गाा द तासी का मत है "मेरे ख्याल में हिंदी-उर्दू का झगड़ा कोई अहमियत नहीं रखता . ख्वाहम स्वाह इसको इतना बढ़ा-चढ़ाकर इस वक्त पेश किया जा रहा है। हिंदी और उर्दू दोनों एक ही जवान की दो शाखें हैं। मुश्किल यह आ पड़ी है कि इस मसले पर जब बहल की जाती है तो महज़ नहो (पद-योजना) पर. सु.पता नहीं होती, बल्कि समझा जाता है कि हिंदी हिंदू धरम की नुमायन्दः है। वह हिंदू धरम जिसमें बुतपरस्ती और उसके लवाजमात धुनियादी अकीदे की हैसियत रखते हैं। इसके बरपल उसलामी तहजीय व तमददुन को अलम-