पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१५७

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भाषा का प्रश्न १५२ . बरदार है। और चूँकि इसलाम से सामी. असर शामिल हैं और तौहीद उसका अमल अकीदा है इसलिये इसलामी तहजीय में यूरोपियन या मसीही तहजीब की खसूसियात पाई जाती है।" --(वही पृ० ५४१.२१) भाषा पर विचार करते-करते गासी द तासी मजहब पर टूट. पड़े और बुतपरस्ती के कारण हिंदी के विरोधो बन गए। कहा. जा सकता है कि उपर्युक्त कथन में गासी द तासी ने अन्य मसीही समीक्षकों के राग-द्वेप का उल्लेख किया है, कुछ अपने पक्ष का प्रदर्शन नहीं। ठीक है, पर तनिक कृपा कर उनके इस दावे पर तो ध्यान दीजिए। उनका कहना है- "मैं सैयद अहमदखां जैसे मशहूर व मारूफ मुसलमान आलिम की हिमायत में और कुछ ज्यादह नहीं कहना चाहता। ....."मुझे उर्दू जवान और मुसलमानों के साथ जो लगाव है वह कोई छिपी हुई बात नहीं है। मैं समझता हूँ कि मुसलमान लोग बावजूद कुरान को किताब-इलाही मानने के इंजील मुक़द्दस की: इलहामी तालीम से इन्कार नहीं करते, हालाँकि हिंदू लोग बुतपरस्त होने के बाअस इंजील की तालीम को कभी तसलीम नहीं कर सकते ।", (उदू' अप्रैल सन् १८७० ई०, पृ० ,२८० व्याख्यान १८७० ई०1) सैयद अहमदखां का उल्लेख विशेष रूप से विचारणीय वस्तुत: सैयद अहमद' ही वह व्यक्ति हैं जिनके १-- सैयद अहमद खाँ के इस रूप से अपरिचित हो जाने के कारण हिंदी-उर्दू-विवाद का दोषारोपण बा० शिवप्रसाद अथवा स्वामी प्रसाद