पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा का प्रश्न "हिंदुस्तान के सिक्कों पर इनकी कीमत लिखने का जव मामला दरपेश था तो यह फैसला हुआ कि हिंदी और उर्दू हरूम में इसे लिखाना चाहिए .....( खुतबात पृ० ३७३) किंतु सैयद अहमद तथा उनके हमजोलियों के कठोर आंदोलन के कारण यह निर्णय निष्फल गया और चाँदी के सिक्कों पर वरावर फारसी बनी रही। कितने आश्चर्य और कितने अन्याय की बात है कि जिस फारसी को सरकार ने सन् १८३७ ई. में अपने दास्तर से निकाल दिया और उसकी जगह . लोक-भाषाओं को महत्त्व दिया वही फारसी आज भी उसके प्रमाद, अकर्मण्यता अथवा विपम कूटनीति के कारण भारत के प्रधान सिक्कों पर विराजमान है और किसी भी देशी भाषा- यहाँ तक कि उर्दू को भी पास नहीं फटकने देती। इसमें तो तनिक भी संदेह नहीं कि 'हश्त आनः', 'चहार आनः शुद्ध फारसी हैं न कि हमारे देश की टकसाली उर्दू हाँ, तो निवेदन यह करना था कि सामी कट्टरता तथा मज- हबी द्वेष के कारण गा िद तासी-सा सपूत समीक्षक भी सन्मार्ग से विचलित हो गया और बात-बात में हिंदी का विरोध करने एक दिन था कि गासा द तासी ने स्वयं अपने पक्ष के एक सज्जन को चेताया था और स्पष्ट कह दिया था कि- "अगरचे मैं खुद उटू का बहुत बड़ा हामी हूँ लेकिन मेरे ख्याल में हिंदी को 'बोली' कहना मुनासिब नहीं मालूम होता (वही पृ० ७०० ) एक दिन यह भी आ गया कि गादि तासी दाद देने लगे कि----