पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१६

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राष्ट्रभाषा की परंपरा 'ग्रंथों में उसे तो मानव भाषा कहा गया है और पाली को देव- गण' तथा बुद्धगण की भाषा । देववाणी के विषय में भूलना न होगा कि वस्तुतः वह ब्रह्मा- वर्त देश की वाणी है। इसी से उसे ब्राह्मी भी कहा जाता है। वाणी के जो 'सरस्वती', और 'भारती' पर्याय चल पड़े हैं उनसे भी सिद्ध होता है कि भारत की राष्ट्रभाषा का नाम भी भारती और देववाणी इसी लिये पड़ा कि वह भरत की संतानों यानी भारतों की भाषा तथा सरस्वती और पद्वती के मध्य देवनिर्मित देश की वाणी थी। 'बुद्धगण' की वाणी को भी देववाणी इसी लिये कहा गया होगा कि वस्तुतः वह इसी देववाणी की विकृति थी। अस्तु, निवेदन यह करना था कि जब बौद्धों को एक व्यापक राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पड़ी तब स्वभावतः उनकी दृष्टि उस भाषा पर पड़ी जो न जाने कितने दिनों से शिष्ट तथा चलित रूपों में समस्त देश की राष्ट्रभाषा थी और जिसका प्रचार अाधुनिक भारत से कुछ बाहर भी था। उसके शिष्ट रूप इसलिये संभव न था कि वह द्विजों की वाणी थी और जनता से कुछ दूर थी। मागधी का प्रसार इसलिये असंभव था कि ग्रहण तो १---हिंदी विश्व कोप, पाली। २-"सरस्वतीषद्वयोवनडोर्यदन्तरम् । तं देवनिर्मितं देशं ब्रह्मावर्त प्रचक्षते ।। ( मनु० २११७) ३.महाभारत में 'ब्राही का व्यवहार चरावर पाया जाता है।