पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१६२

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गासी द तासी और हिंदी कंपनी की नीति को ब्रिटिश सरकार ने और भी आगे बढ़ाया और उर्दू की पूरी सहायता की। गासांद तासी का. जद की अशागत में अंगरेजी हुकूमत भी हत्तल्मकदूर माली इमदाद कर रही है और हर तरह से उसकी हिम्मत अफजाई में कोशा है । ---( वहीं पृ० ३०५ ) अंगरेजी सरकार की इस उद -निष्टा का एक और भी प्रबल: कारशा है। चुनांच गादि तासी फरमाते हैं: "हुकमत-वक्त को इनसे ( मुसलमानों से ) बड़ा खतरा है स वारले कि इनमें फिर वही जोश पैदा हो रहा है जिसने इन्हें दुनिया के बड़े हिस्से को फतह करने पर उकसाया था।" | उर्दू (वही ) पृ० ५.७६, जुलाई १८३८ ई०। गासाद तामी मुस्लिम संकीणता का बार बार उल्लेख करते है, फिर भी हिंदी-उद-विवाद में उर्दू का ही पक्ष लेते हैं। इसका प्रत्यक्ष कारण तो आसमानी किताब का रिश्ता है, पर वही सब कुछ नहीं है। गासा द तासी को धोना भी बहुत होता है। एक ओर तो सैयद अहमदयाँ तथा उनके हिमायती उर्दू के पक्ष को पुष्ट करने के लिये पूरी निष्टा से काम करते तथा उनकी भरपूर सहायता करते हैं के पक्ष के सभी अखबारों को उनके पास भेजते नथा भिजवाते हैं। दूसरी ओर हिंदीवाल अपनी कुम-कर्णी निद्रा में मन्न हैं। वे किसी प्रकार जगाने पर भी जागते ही नहीं, बल्कि इस तरह की बातें करते जाते हैं। जिनसे किसी भी साधु समीक्षक को धोखा हो जाता है। .