पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१६३

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-आषा का प्रश्न हिंदी फाव.सी का उपयोग इसलिये करते थे कि वह राज- लिपि श्री, पेट भरने और शान से रहने के लिये इसकी जरूरत थी। सरकार उसी पर लट्टू थी, फिर सरकार के पिछलगू पेटू उससे किस तरह दूर हो सकते थे ? सब कुछ हो जाने पर भी तो वही पुरानी दासता चल रही है, ओ. पेट और प्रतिष्ठा के लिये फारसी लिपि को छोड़ना पसंद नहीं करती और नागरी की सचाई से दूर भागती है। खैर, गासाद् तासी का निष्कर्ष है- "अरबी-फारसी अल्फाज को नागरी खत में पढ़ना इससे कहीं ज्यादा दुश्वार है कि संस्कृत के अल्फाज को झारली रस्म खत में पढ़ना। चुनांचः यही वजह है कि बावजूद इस अम्र के कि देवनागरी रस्म खत मुकदस समझा जाता है, अक्सर हिंदू फारसी हरूफ तहजी को. इस्तेमाल करते हैं, और वह खालिस हिंदी इबारत को झारसी रस्म खत में बिना तक- ल्लुफ लिखते हैं।" (वही पृ० ४६२) गासी द तासी के उक्त निष्कर्ष से जो लोग सहमत हैं वे शौक से फारसी लिपि को अपनाते रहे और संस्कृत शब्दों को फारसी लिपि में ठीक ठोक लिखा तथा पढ़ा करें। उनसे उल- झने की कोई जरूरत नहीं। पर जो लोग फारसी के कारनामे से भली भाँति परिचित हैं और उसकी करामात को अच्छी तरह समझते हैं उनसे हमारा. नम्र निवेदन है कि वे तुरंत कृपा कर नागरी लिपि को अपना लें और गाइ-तासी जैसे कट्टर समीक्षक को यह समझने का अवसर दें कि वास्तव में परिस्थिति क्या है और नागरी लिपि संसार की अंन्य लिपियों