पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७१

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भाषा का प्रश्न १६६ "यह बात बहुत उत्तम है क्योंकि अभी कलकत्ते में इस विषय की (स्कूलों में कौन-सी भाषा पढ़ाई जाय) सभा हो रही है। इसलिये जहाँ तक बने वहाँ शीघ्र संस्कृत और मध्यदेश की भाषाः के प्रचार के वास्ते, बहुत प्रधान पुरुषों की सही कराके कलकत्ते की सभा में भेज दीजिए और भिजवा दीजिए। कहने की आवश्यकता नहीं कि यदि स्वामीजी के सामने कभी फारसी-अरबी शब्दों के बहिष्कार का प्रश्न होता तो इस समय अवश्य ही 'वास्ते' और 'सही' को जगह न देते और अनायास ही 'हेतु' और 'हस्ताक्षर' लिख जाते। परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। कारण प्रत्यक्ष है। उन्हें मुस- लिम शब्दों से चिढ़ न थी। वे उन्हें भी प्यार की दृष्टि से देखते और आर्यभाषा का अग समझते थे; आर्यभाषा के भीतर आ जाने से उन्हें भी आर्य ही समझते थे। स्वामीजी की दृष्टि में 'वास्ते प्रचार अनार्य और प्रचार के वास्ते' आर्य था। किंतु पत्र-व्यवहार में इस प्रकार की भाषा को अनुचित नहीं समझते थे। क्योंकि कागजात' का जो अर्थ १-उर्दू में बहुवचन तीन तरह से बनते हैं-हिंदी, फारसी और अरबी। जो लोग हिंदी और उर्दू के व्याकरण को एक ही बताते हैं उन्हें इस पर विचार करना चाहिए और यह सिद्ध कर देना चाहिए कि 'हिंदी में भी उसी प्रकार के बहुवचन बनते हैं अथवा उसी मात्रा में संस्कृत के बहुवचन काम करते हैं। सच तो यह है कि उर्दू के व्याकरण ने भी बहुत कुछ उसे विदेशी बना दिया, चाहे आप उसे स्वदेशी ही समझे।