पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७३

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- 2 भापा का प्रशः १६८ के 'उर्दू खत की उर्दू पर ध्यान दीजिए और भूल न जाइए कि पद-विन्यास क्या है। "हस्बुल ईमा आपके मैं यहाँ चंद्रिका तलाश कर रहा हूँ। अनकरीब वशरते दस्तयाबी अरसाल खिदमत होगी। कैकीयत यहाँ की यह है कि जमीन असबाब छापेखाने का मय कागज रौशनाई व प्रूफ-सीट वगैरा के कलकत्ता से यहाँ भा गया ।".. आप कहीं यह न समझ लें कि यह खत किसी मौलाना के पास भेजा गया था और इसी लिये इसकी भाषा को यह रूप दिया गया। नहीं, कदापि नहीं। यह पत्र एक आर्य सुशी इंद्रमन साहब के नास भेजा गया था जो 'आर्यसमाजी और स्वामीजी के दल के आदमी थे। बात यह थी कि उस समय सरकार की ओर से उदूः को इतनी मदद मिल रही थी कि लोग जीविका और प्रतिष्ठा के लिये उसी को अपनाते थे। स्वामीजी के उपदेश से बहुत-से मसिजीवी और सभ्य लोग वैदिक तो बन गए, पर उर्दू के साथ ही आर्यभाषा न सीख सके। इसलिये स्वामीजी को उनके पास उर्दू में पत्र भेजना पड़ा। इस उर्दू का मतलब था फारसी का वारिस त. किः देश मापा । . इसको समझने के लिये फारसी का . १-पत्र और विज्ञापन चतुर्थ भाग पृ०२॥ २. मौलाना अब्दुल हक साहब ने 'उदू जनवरी सन् १९३३, पृ० १४ में फरमाया है-"जिस तरह बाप का जानशीन बेटा होता है उसी तरह फ़ारसी की कायम मुकाम उर्दू हो गई ।"