पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७६

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स्वामी दयान'द और उर्दू इतने पर भी यदि लोग यही कहें कि स्वामीजी हिंदी और संस्कृत को बिला बजह, बगैर जरूरत' राष्ट्र पर लादना चाहते थे तो उनसे हम क्या कहें। उनका इलाज तो हमारे पास पर जो लोग सत्यनिष्ट और हकपरस्त हैं उनसे हमारी प्रार्थना है कि शांतचित्त से प्रश्न पर विचार करें और रडे दिल से सोचें कि असलियत क्या है। क्यों स्वामीजी पर यह लांछन लगाया गया कि "वह तरह तरह से अपनी नई हैसियत और इन्फरादियत जताने लगे। और जिस तरह एक वेब कफ औरत ने अपनी खबसूरत अंगूठी दिखाने की खातिर घर को आग लगा दी थी, उन्होंने भी बने-बनाए घर को विगाड़ना शुरू किया। सबसे पहले नजला उर्दू जवान पर गिरा।" जिस देश में बैठकर आज उर्दू के परम प्रचारक मौलाना अब्दुल हक उर्दू को मुल्की जवान का खिताब दे रहे हैं उसी देश से स्वामीजी के पास पुकार आती है कि हिंदी, देवनागरी लिपि RA आल इंडिया मुसलिम एजूकेशनल कान्करेंस की उर्दू कान्फ- रैस में २८ अप्रेल सन् १९३७ ई. के व्याख्यान में अलीगढ़ में अब्दुल हक यह दावा पेश किया और फिर उसी महीने की उ' पत्रिका में छापा । कहने की जरूरत नहीं कि मौलाना हक एकता के प्रेमी और राष्ट्र के भक्त हैं। मुल्की जवान के फैसले के निवे नेताओं से बराबर मिलते रहते हैं और हिंदी-हिंदुस्तानी' को "-नगर का रास्ता बताते हैं ।