पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सापा का प्रश्न का में', 'पत्रव्यवहार संस्कृत में हो। अन्तु, इस प्रसंग को यही छोड़िए और देखिए कि उर्दू पर कौन-सा नजला गिरा। स्वामीजी ने उर्दू के लिये क्या किया, इसे भी देख लें। संस्कृत के प्रचार को सामने रखते हुए स्वामीजी लिखते हैं- "अब इसके साधनार्थ यह होना चाहिए कि कुल पठन-पाठन समय के छः घंटों में ३ घंटे संस्कृतं २ घंटे अँगरेजी और १ घंटा उर्दू फारसी पढ़ाई जाया करें। ध्यान देने की बात है कि स्वामीजी ने हिंदी या आर्च-भाषा का विधान न कर 'उर्दू उल्लेख किया है। कारण स्पष्ट है। हिंदी का सामान्य ज्ञान सवको था। संस्कृति के बोध के लिये संस्कृत और.. सरकार तक पहुँच के लिये अंगरेजी और उर्दू की जरूरत थी! फारसी के बिना उर्दू का काम ही न चलता, क्योंकि वह 'फारसी की कायममुकाम' थी। इसलिये उसका भी पठन-पाठन आवश्यक था। इस बात का पता पंडित ज्यालादत्तजी के पत्र से चल जाता है। स्वामीजी ने उनसे फारसी पढ़ने को कहा था। उन्होंने सी पढ़ना उचित समझा था, पर किसी कारणवश आरंभ नहीं किया। निदान लिखते हैं- "पढ़ने के लिये जो आपसे मैं कह आया था सो फारसी तो मुंशीजी से नहीं पढ़ी और संस्कृत का अभी प्रारंभ नहीं किया ।" १-पत्र और विज्ञापन च० भाग पृ०.२८ । २-पत्रव्यवहार प्र० भाग पृ० ४१८:।..