पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१७८

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स्वामी दयानद और उर्दू समझ में नहीं आता कि हम उन लोगों की क्या दवा करें जो स्वामीजी पर इस तरह का लांछन लगाते हैं और अपने घर की बात नहीं देखते कि आज भी राष्ट्रभाषा या 'मुल्की जवान' के नाम पर किस प्रकार उर्दू में फारसी-अरबी की तरकीत्र भरी जाती है और हिंदी तथा भापा का नाम तक मिटाना इष्ट समझा जाता है। स्वामीजी ने एक अपराध अवश्य किया। वह सीधा और प्रत्यक्ष अपराध यह था कि वे भी चाहते थे कि सरकार देश की भाषा हिंदी को अपने यहाँ जगह दे और उर्दू के रूप में प्रच्छन्न फारसी से निरीह जनता को मुक्त करे। प्रच्छन्न फारसी से कुढ़े नहीं, बल्कि उस मसविदा पर ध्यान दें जो स्वामीजी की ओर से सरकार में पेश किया गया था। उसका एक अश' है। "लिहाजा बावजूद मलहूज़ रखने तमामतर एजाज और श्रादाब कानून मजकूर हसबजेल इलतमास करता हूँ, कि अगरचे एक्ट मजकूर का असली मंशा सरीह इंसाफ और मसलिहत आमा जाधिम करना और हिंदुओं के असली और इन्साफी कानून को ...उ की जगह हिंदुस्तानी का प्रयोग इसी लिये जोर शोर से सामने आ रहा है कि वह हिंदी की हस्ती को हिंदुस्तानी के नाम पर. आसानी से मिटा सके। उसके भ्रम में कहीं हम हिंदी को खो न , इलिये खरी कसौटी पर कस कर उसको राष्ट्रभाषा का बाचक्र बनाना चाहिए। पन और विज्ञापन हि भाग ०७४-५ !