पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१८३

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एक पाई सीका , आज बहुतों को यह सुनकर आश्चर्य होगा कि कभी अंग- रेजी सरकार ने भी पैसे पर हिंदी अक्षरों को स्थान दिया था और फिर न जाने किस प्रमाद में आकर उन्हें अपने सिक्कों से उड़ा दिया। हो सकता है, यह भी उसकी 'प्रभुता का ही प्रसाद हो, जो अभी तक किसी न किसी रूप में प्रति दिन मिलता ही रहता है। आज ताँबे के पैसे पर न तो फारसी हरफ दिखाई देते हैं और न नागरी अक्षरों के ही दर्शन होते हैं। पर कभी वह दिन भी था कि अगरेजी सरकार ने स्वतः विधान बनाया था कि-- "ऊपर के लिखे हुए पैसे का मंडल ऐसा होगा कि एक इंच याने अंगूठे के पहले पोर को २० हिस्सा फर्ज करके उसके १९ हिस्से का खत मंडल को आधोध कर सकेगा और उसका वजन आठ आने नौ पाई सिक्के भर होगा और उस पर नीचे की लिखी इबारत फारसी और नागरी हरफों से जरब की जाएगी।" तफसील पैसे के एक तरफ फारसी हरफों में 'सन् ३७ जुलूस शाह आलम बादशाह ।' उसके दूसरी तरफ फारसी और नागरी हरफों में एक पाई. सीका' (अँगरेजी सन् १८०९ साल १० आईन ३ दफा )