पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१८६

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उर्दू की हिंदुस्तानी 'उदू' अथवा 'उर्दू-ए-मुअल्ला' के अर्थ को ठीक ठीक ग्रहण करने के लिये यह आवश्यक है कि हम मीर अमन देहलवी के उस कथन को उद्धृत करें जिसमें उन्होंने 'उर्दू की जवान' की चर्चा की है और उद-ए-मुअल्ला' की सीमा भी बहुत कुछ निर्धारित कर दी है। उनका कथन है- "जब हजरत शाहजहाँ साहो केरान ने किला-मुबारक और जामा मसजिद और शहरपनाह तामीर फ़रमाया. शाह ने खुश होकर जश्न फरमाया और शहर को अपना दारुल- खिलाफत बनाया तब ले शाहजहानाबाद मशहूर हुआ... वहाँ के शहर को उर्दू-ए-मुअल्ला खिताब दिया । ...निदान जवान उर्दू की मॅजते मॅजते ऐसी मैजी कि किसी शहर की बोली उससे टकर नहीं खाती (पृ. ५1) मीर अमन की इतिहास की जानकारी पर ध्यान देना व्यर्थ यहाँ तो इतना जान लेना ही काफी हैं कि मीर अमन 'उर्दू-ए-मुअल्ला' तथा 'उर्दू' का किसी लश्कर या बाजार के संकेत तव वाद- और १- मोर अमन के सभी अवतरण 'बाग़-बो-वहार' नामकी उनको प्रसिद्ध पुस्तक ले लिए गए हैं। इस पुस्तक का एक दूसरा नाम किम जहार दरवेश' भी है। यहाँ पर जो अवतरण दिए गए हैं देशी नवल किशोर प्रेस के सन् १६२० ई० वाले संस्करण से हैं।