पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१८८

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8 उर्दू की हिंदुस्तानी जवान पर संस्कृत के कितने और कैसे-कैसे शब्द नाच रहे थे इसका पूरा पूरा पता बताना तो इस समय असंभव है। हाँ, इतना आसानी से किया जा सकता है कि उसका कुछ आभास दिखा दिया जाय और पाठकों से यह जान लेने की इच्छा प्रकट कर ली जाय कि आखिर आज हम क्यों उन्हें अपनी जवान से अलग कर दे ? उनका और अधिक उपयोग क्यों न करें ? सुनिए, मीर अमन का कहना है “सो अब खुदा ने वाद मुद्दत के जान गिलक्रिस्ट साहब बहादुर सा दाना नुक्तारस पैदा किया कि जिन्होंने अपने ज्ञान और उक्ति से और तलाश और मेहनत से काअदों की किताबें तसनीक की। इस सवव से हिंदुस्तान की जवान का मुल्कों में रवाज हुआ और नए सिर से रौनक ज्यादः हुई।" (वही पृ०५) अंगरेजों अथवा ब्रिटिश सरकार ने किस तरह उदू को बढ़ाया, इसका विचार यहाँ आवश्यक है। यहाँ हमें 'ज्ञान और उक्ति' को नोट कर लेना है और समय पड़ने पर यह याद दिला देना है कि यह उर्दू का 'ठेठ हिंदुस्तानी' शब्द है जिसे "उर्दू के लोग हिंदू-मुसलमान, औरत, मई, लड़के-बाले, खास- यो-श्राम आपस में बोलते चालते हैं।"--(वही पृ०३) या. मार अमन को ठेट जबान के कायल हैं। प्रसिद्ध फ्रांसीसी विद्वान् गाई द तासी को तो उसका पाठ्य-पुस्तकों से निकाला जाना खल सा गया था। उनकी दृष्टि में हिंदुस्तानी' को उचित शिक्षा के लिये उनका पाठ्यक्रम में बना रहना अनिवार्य था।