पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/१९०

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१८५ उदू की हिंदुस्तानी कर चुके हैं और फलतः अपनी 'मुल्की जबान' में उनको देखना गुनाह समझते हैं। दूसरी ओर उस में 'नरे', 'घुड़चढ़ी', 'भाया', ढेर और रीझी' आदि जैसे गवारू शब्द भी आ गए हैं। फिर मला जवान के उस्ताद इसे क्योंकर अपनी मुल्की जबान मान लें! यह तो गुलामों की भाषा के शब्द हैं । जो हो, मीर अमन ने कुछ इसका ध्यान अवश्य रखा है कि उनकी 'उर्दू की हिंदुस्तानी' में कुछ हिंदियत भी जरूर हो। निदान हिंदू-मुसलिम एकता की एकाध झलक दिखा देने में उनको कोई क्षति नहीं दिखाई देती । चुनांच एक जगह लिखते हैं- "बहन ने......इमाम जामिन का रुपयः मेरे चाजू पर बाँधा दही का टीका' माथे पर लगाकर, आँसू पीकर बोली, "सिधारो तुम्हें खुदा को सौंपा। पीठ दिखाए जाते हो इसी तरह जल्द अपना मुँह दिखाइयो।"--(वहीं पृ० १५ ) । 'दही का टीका माथे पर देखने का हौसला लिले न होगा, पर वहाँ तो कलंक का टीका ही दिखाई दे रहा. ..समयका । १-बहावियों के घोर आंदोलन में इस ढंग की हिंदियत का बहुत कुछ विनाश कर दिया। रही सही का ध्यंन शीत्र हो 'लीग' ऋदिन और ऋटोर हाथों से होने जा रहा है । . 'इम्तयाज की इस सच का सामना करना राष्ट्रभक्तों का काम है। दीन-परत्तों को कि दीन को मजहब से अलग करें और रस्म वो रबाज को मालानी अथवा किताबी होने से बचा लें। है। -