पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/२६

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राष्ट्रभाषा की परंपरा राजभाषा भी हो गई। परंतु आगे चलकर विदेशियों की भाँति वह भी सर्वथा स्वदेशी बन गई और वहाँ की भाषा में मिल जुल' कर वहीं की हो रही । पैशाची के परीक्षकों ने उसके देश के अन्वेषण में कुछ गड़- बड़ी कर दी है। उन्होंने इस बात की तनिक भी चिंता नहीं की कि पैशाची देशभाषा के अतिरिक्त राजभाषा भी है। पैशाची के विषय में प्राचीनों का मत है कि वह विंध्य या विध्य की पड़ोसिन भाषा हैं। राजशेखर (९वीं शती.) ने काव्यमीमांसा एक प्राचीन पद्य उद्धृत किया है। इसमें स्पष्ट लिखा है- "श्रावन्या: पारियात्रा: सह. दशपुरजभूतमात्रां भजन्ते" (अ०.१०, ५० ५१)। इसके सिंवा 'कवि-समाज' में- 'दक्षिणतः भूतभाषाकवयः' का विधान किया है । . भूतभापा से उनका तात्पर्य पैशाची है। उन्होंने स्पष्ट कहा है-

- "तत्र पिशाचादयः शिवानुचराः स्वभूमौ संस्कृतवादिनः मत्र्ये

तु भूतभाषया व्यवहरन्तो निबन्धनीयाः ।" (वही पृ०.२९)। अतएव राजशेखर के प्रमाण पर दक्षिण भूतमाया का प्रांत ठह- रता है और विध्य-प्रदेश से उसका परंपरागत संबंध सिद्ध हो जाता है। किंतु इस प्रतिज्ञा में अड़चन यह आ जाती है कि दक्षिण महाराष्ट्री का क्षेत्र है। वहाँ की भाषा का पुराना तथा प्रचलित नाम पैशाची या भूतभाषा नहीं, प्रत्युत दाक्षिणात्या प्राकृत हैं। लक्ष्मीधर ने साफ साफ कह दिया है- -