भाषा का प्रश्न pa "तत्र तु प्राकृतं नाम महाराष्ट्रोद्भवं विदुः" (षड्भाषाचंद्रिका २२७)। शालिवाहन के प्रसंग में हमने देख लिया है कि उसके शासन में प्राकृत का बोलबाला था। उसके प्रभुत्व से सभी प्राकृतभाषी बन गए थे। स्वयं उसने 'गाहा सत्तसई की रचना की थी और वह 'कविवत्सल'२ की उपाधि से विभूषित हुआ था। किंतु उसके प्राकृत-प्रेम के प्रसाद से पैशाची भी लिपिबद्ध हो गई थी और उसमें एक 'वडुकहा' भी बन गई थी। प्राकृत तथा पैशाची के इस संबंध को स्पष्ट करना अनिवार्य है। इसके बिना प्रकृत गुत्थी सुलझ नहीं सकती। पैशाची पिशाचों की भाषा है। वृद्धों के कथनानुसार पिशाच-देश हैं: "पाण्ड्यकेकयबाहीकसिंहनेपालकुन्तलाः । सुधेष्णभोजगान्धार हैवकन्नौजनास्तथा ॥" (षड्भाषाचंद्रिका श२६) वृद्धों ने किस दृष्टि को सामने रखकर उक्त जनपदों को पिशाच-देश कहा है, इस पर वाद-विवाद करने की जरूरत -- भोजराज ने ठीक ही कहा है- “केऽभूवन्नाव्यराजस्य राज्य प्राकृतभाषिणः । काले श्रीसाहसाङ्कस्य के न संस्कृतवादिनः ॥” (सर० २११५) २-- *सत्त सताई कइवच्छलेण कोडीय मञ्झरुमारम्मि । हालेण विरइआई सालंकाराणां गाहाणम् ॥ (गाथा-सप्तशती)