पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/३५

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भाषा का प्रश्न जरूरत नहीं। सभी लोग इसे जरूरत से कहीं ज्यादा जानते.. हैं। हाँ, आवश्यकता इस बात के प्रकाशन की अवश्य है कि संस्कृत कभी मरी नहीं बल्कि कामधेनु की भाँति सदा हमारी कामनाओं या अभीष्ट को पूरा करती रही और ब्राह्मणों के उदय से फिर समस्त भारत की राष्ट्रभाषा बन गई। . बौद्धों तथा जैनों ने भी उसे अपनाया और अपने प्रयत्न से उसके भांडार को और भी भर दिया। संस्कृत एकमात्र व्यापक राष्ट्रभाषा बन गई। कथा-पुराण के साथ वह अपने सरल रूप में जनता में चलती रही। निदान पड्भाषाओं में उसकी भी गणना हुई। संस्कृत चलती अवश्य थी पर वह किसी प्रांत को व्यवहृत बोल-चाल की देश-भाषा नहीं रह गई थी। शिष्टों के भाव: विनिमय उसी में होते थे पर जन-सामान्य आपस में किसी स्थानीय देश-भाषा का व्यवहार करते थे। अतएव भाषाओं के Moreover, the fact that Sanskrit was thus regularly used in conversation by the upper classes, court circles, eventually following the example of the Brahmins in this regard, helps to explain the constant influence exercised by the higher form of speech on the vernaculars which reveals itself 'inter alia' in the constant influx of Tatsamas." Ai B. Keith, History of S. Literature. Preface P. XXVII: