पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/३७

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भाषा का प्रश्न 35 j पैशाची पिशाच देश अथवा सामान्यतः उदीच्यों की भाषा निश्चित हुई। . संस्कृत, प्राकृत, मागधी, शौरसेनी और पैशाची का लेखा लग गया। अव केवल अपभ्रंश का पता लगाना शेष है। आचार्य दंडी का कथन है :- "भाभीरादिगिरः काव्येवपदंश इतिः स्मृताः। शास्त्रे तु.. संस्कृतादन्यदपभ्रंशतयोदितम् ||" (काव्यादर्श ११३६) 'शास्त्र से आचार्य का तात्पर्य व्याकरण है। - वैयाकरण पतंजलि मुनि (ईसा से डेढ़ दो सौ वर्ष पूर्व) ने 'अपशब्द' मात्र को अपभ्रश कहा है। देखिए :- भूयासा पशब्दाः अल्पीयांसः शब्दाः । एकैकस्य शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः। तद्यथा गारित्यस्य गावी, गोणी, गोता, गोपोतालिके- त्येवमादयोऽपन शाः। अस्तु, 'शास्त्र' के 'अपभ्रंशाः' से हमारा कोई. प्रयोजन नहीं। हमें तो 'काव्य' की अपभ्रंश भाषा का देश देखना है । : भाग्यवश आचार्य दंडी ने इसको भी स्पष्ट कह दिया है कि काव्य में आभीरादि की वाणी को अपभ्रंश कहते हैं। 'काव्य' का १-.-महाभारत के देखने से पता चलता है कि उस समय , दो प्रकार के आभीर थे। एक की गणना शूद्रों में होती थी और दूसरे की आततायियों या भ्रष्टों में ! - कृष्ण की यादवियों को लूटनेवाले

आभीर ही थे। उनके पाप से 'सरस्वती' नष्ट हो गई थी। संभव