पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/४९

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भाषा का प्रश्न पंजाब में 'गुजरात' तथा 'गुजरानवाला' आज भी गुर्जरों के नाम को उजागर कर रहे हैं। ब्रह्मर्षि देश में आज भी गूजरों. की वड़ी वस्ती है। राजपूतों में अनेक गुर्जरकुल-प्रभूत हैं। सारांश यह कि गुजराभोरों के प्रभाव से अपभ्रंश पुष्ट एवं प्रबल हो गई और संस्कृत के साथ भारत की चलित राष्ट्रभाषा बन गई। 'नागर' पंडितों की अपभ्रश थी। उसका प्रयोग काव्य- रचना में होता था। उसके अतिरिक्त एक और भी अपभ्रंश थी जिसका नाम 'ग्राम्य' रख दिया गया था। नमिसाधु ने इस ग्राम्य का उल्लेख 'उपनागराभीर' के साथ किया है और जैना- चार्य हेमचंद्र ने उसे काव्य-भाषा के भीतर कर लिया है। उनका कहना है- "पद्यं प्रायः संस्कृतप्राकृतापभ्रंशग्राम्यभाषानिबद्धभिन्नान्यवृत्तसर्गा- श्वाससन्ध्यवस्कन्धकवन्धम् ।" ( काव्यानुशासन, काव्यमाला संस्करण पृ० ३३०)। प्राचार्य ने कृपा कर उस काव्य का निर्देश भी कर दिया है जो ग्राम्यभाषा में रचा गया था- 'ग्राम्यापभ्रशभाषानिबद्धावस्कन्धकबन्धं भीमकाव्यादि। ( वही पृ० ३३७)। दुर्भाग्यवश भीमकाव्यादि का कोई पन्ना हमारे सामने नहीं. । फिर भला हम किस मुँह से कह सकते हैं कि यही प्राम्या- fouud even in countries of which the local language was Dravidian. (L. S. Introductory, P. 124.)..