पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा का प्रश्न रूप में वह सर्वत्र फैल गई और प्राकृतों से कहीं अधिक सुबोध' जान पड़ने लगी। 'मानुपी ने क्रमशः पाली, शौरसेनी और नागर के रूप में भारत की चलित राष्ट्रभाषा का रूप धारण किया और अन्य प्राकृतों अथवा देशभाषाओं को स्वतंत्र बढ़ने दिया। इस प्रकार इसलाम के पहले भारत में एक ओर तो राष्ट्रभापा के रूप में संस्कृत विराजमान थी और दूसरी ओर नागरापभ्रंश। संस्कृत का व्यवहार शिष्टों में था। संस्कार तथा कालचक्र के प्रभाव से वह श्रमसाध्य हो गई थी। फारसी के आ जाने से उसकी राज-मर्यादा भंग हो गई, पर चलित और सहज होने के कारण 'नागरी बनी रही। समूचे हिंद की भाषा होने के नाते उसे हिंदी की उपाधि मिली। वही यवनों की भी चलित राष्ट्रभाषा हुई। यवनों ने अपभ्रश को. इतना महत्त्व दिया कि अपभ्रश उन्हीं की भाषा सी हो गई। वैयाकरणों ने उसकी उपेक्षा की। अब उसके व्याकरण पर विचार करना आवश्यक हो गया। लक्ष्मीधर से साफ साफ कह दिया- १--जैन कवि सिद्धर्षि ने उपमितिभवप्रपंचकथा (६०६ ई० ) को प्राकृत में नहीं लिखा बल्कि उसे संस्कृत में लिखा और उसका कारण, यह बताया कि शिष्ट लोग संस्कृत के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा को पसंद नहीं करते। साथ ही इस बात को स्पष्ट भी किया कि प्राकृत- प्रेमी सजनों के लिये संस्कृत सुवोध पड़ेगी।