पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/५४

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राष्ट्रभाषा की परंपरा भापा के दो रूप थे। एक का प्रचलन जन-समाज में था और दूसरे का व्यवहार शिष्ट तथा शिक्षितों में। अर्थात् एक शिष्ट या 'द्विजी' भाषा थी तो दूसरी चलित या 'मानुपी' भापा। दोनों का. व्यवहार साथ-साथ चल रहा था। तुरुकों के शासक हो जाने से एक और ही शिष्ट या राज-भाषा का आगमन हुआ जो अँगरेजी के राजमापा बनने के पहले यहाँ की शाही जवान थी। इस तरह हम देखते हैं कि मुसलिम शासन से दा शिष्ट भापानओं का प्रचलन था। एक का व्यवहार. शिष्ट हिंदुओं में होता था तो दूसरी का शिष्ट यवनों में जनता एक तीसरी ही भाषा का प्रयोग करती थी-उसी भाषा का, जिसे हमने 'मानुपी' के सहज नाम से चाद किया है। यवनों की शिष्ट भाषा का नाम फारसी था। वह केवल राजवर्ग की भापा थी। नवागंतुक मुसलमान भी उसी का प्रयोग करते थे। परदेशी और पुराने मुसलमान जिस भाषा में भापण करते थे उसका नाम रेखता (अपभ्रश) या हिंदी (हिंद की भाषा ) श्रां । अर्थात् यही उस समय की 'मुश्तरका जवान' थी। हिंदू-मुसलिम इसी को अपनाते थे। सचमुच यही मुसलिम काल की सची राष्ट्रभाषा थीं। . and subject to the rules of grammatical inflection and etymology, and to all tlie niceties of grammar and rhvlovic." Alberunis' India, Dis E. C. Sachan, London, Kogan Paul 1910 P. 18.