पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/५५

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भाषा का प्रश्न तुरुकों के राज्य में हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी ने जो रंग पकड़ा उसकी मीमांसा अन्यत्र होगी। यहाँ इतना ही निवेदन कर देना अलं है कि आज भी हमारे सामने भाषा का वही पुराना प्रश्न है जो कभी हमारे पूर्वजों के सामने था। अतर केवल इतना पड़ गया है कि हममें कुछ ऐसे जीव भी बस गए हैं जो यहाँ के नहीं वहाँ के होकर यहाँ रहना चाहते हैं और हिंद को अपना घर नहीं बल्कि छावनी समझते हैं। उनके इस व्यामोह को हटाने का प्रयत्न करना जागते को जगाना और पाषंड को बढ़ाना है। अतएव उनकी उपेक्षा कर हमें स्पष्ट कह देना है कि राष्ट्र के मंगल तथा लोक के. कल्याण के लिये यह परम आवश्यक ही नहीं सर्वतः अनिवार्य भी है कि हम भापा की परंपरा पर ध्यान दें और अच्छी तरह, भली भाँति, देख लें कि हमारा राजमार्ग क्या है; किस प्रकार हम एक में अनेक का. विधान और अनेक में एक का अनुष्ठान करते आ रहे हैं। यदि हमने प्रमादवश परंपरा के कारण प्रथित राजमार्ग को छोड़ स्वच्छंद पगडंडियों का सहारा लिया और व्यर्थ के प्रलोभनों में अनमाना ढर्रा कायम किया तो हमारा विनाश अवश्यंभावी है सबके होने में हम कहीं के न रह जायेंगे और एक ऐसी सूरत निकाल या खड़ी कर लेंगे जो धीरे धीरे हमीं को भक्ष लेगी। फिर राष्ट्र और राष्ट्र-भावना का उद्धार कौन करेगा? ।