पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/६

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इधर भाषा के. प्रश्न को लेकर देश में नाना प्रकार के मत- मतांतर चल पड़े हैं। ऐसी स्थिति में सभा अपना यह धर्म समझती है कि हिंदी भाषा की प्रकृति, प्रवृत्ति एवं परंपरा का परिचय यथार्थ रूप में जनता को दे और राष्ट्र के नेताओं तथा साहित्य के सच्चे सपूतों का ध्यान कुछ इस ओर भी आकर्षित करे कि. भाषा के समुचित विकास तथा राष्ट्रभाषा के परितः परिपाक के लिये उस रोग का निदान कितना अनिवार्य है जिसके कारण आज देश शीर्ण हो रहा है। जो लोग भाषा की परंपरा एवं हिंदी के इतिहास से भली भाँति परिचित हैं उनसे तो कदाचित् कुछ कहने की आवश्यकता नहीं, परंतु जो लोग हिंदुस्तानी के पुजारी और किसी बनावटी भाषा के भक्त हैं. उनसे हमारा निवेदन है कि वे कृपा कर भाषा के प्रश्न पर एक बार फिर विचार करें और प्रत्यक्ष देख लें कि देश या लोक के कल्याण के लिये उसकी भाषा की प्रवृत्ति कैसी हो और परंपरा के साथ उसका कैसा संबंध रहे। इन लेखों को मनोयोग के साथ पढ़ने से स्पष्ट अवगत होगा कि भारत की परंपरागत राष्ट्रभाषा वर्तमान हिंदी है जिसे प्रारंभ में अँगरेजों ने हिंदुस्तानी भी कहा था पर पीछे से वे न जाने क्यों फारसी लिपि में लिखी भाषा को हिंदुस्तानी कहने लगे। उर्दू वास्तव में देश की भाषा अथवा लोक की वाणी नहीं प्रत्युत्त उर्दू ( देहली दरबार ) की भापा है। उसको राजभाषा फारसी की जगह नीतिवश दी गई और सच्ची राजभाषा के रूप में अँगरेजी चालू कर दी गई। काशी नागरीप्रचारिणी समा, वनारस।. प्रधान मंत्री रामबहोरी शुक्ल