पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/६३

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साषा का प्रश्न कि सर जार्ज ग्रियर्सन की तहकीकात लसानी' से भी हिंदी ही राष्ट्र-भाषा सिद्ध होती है। हिंदी को सर जार्ज ग्रियर्सन ने भाषा, काव्य-भापा क्या लोक या बोलचाल की भाषा भी माना है। किसी खास जगह की न सही, उनकी दृष्टि में वह समस्त उत्तरी भारत की तो शिष्ट और व्यवहत बोलचाल की भाषा है। हमें इसी हिंदी को लेना है। यही हिंदी हमारी राष्ट्र-भाषा है इसी को समस्त भारत अपनी राष्ट्र-भाषा मानता है। इसी को भाषाविदों ने भी राष्ट्र-भाषा का पद दिया है। रही उर्दू की बात। इसके विषय में सर जार्ज ग्रियर्सन का स्वतः कहना है :- "A form of the Hindostani dialect of Western Hindi, It is generally written in Persian character and is distinguished by the free use of words yorrovert from Persian or Arabic." : (वही, पृ० ५१३) . ग्रियर्सन साहब के प्रकूत कथन का भात्र यह है कि हिंदी और उर्दू की प्रकृति' वस्तुतः एक ही है पर उनकी 'प्रवृत्ति' में भेद है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इसी प्रवृत्ति-भेद के कारण हिंदी तो भारत की राष्ट्रभाषा है और इसी प्रवृत्ति-भेद के कारण उर्दू नहीं। ग्रियर्सन साहब ने कृपा कर 'लिपि' और 'कोश' का उल्लेख यहीं पर कर दिया है। उर्दू की लिपि 'फारसी' है और वह 'फारसी-अरवी' से शब्द उधार लेती है। उसकी इसी प्रवृत्ति ने उसे भारत से अलग कर दिया है। वह सचमुच अहिंदी हो गई है। लिपि और कोश की भाँति ही पिंगल, पद-योजना और साधन आदि सभी उपादान फारसी-अरबी से. लिए जाते हैं।