पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/६४

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राष्ट्रभाषा का निर्णय -> यहाँ के तो नाम मात्र को भी नहीं होते। फिर उर्दू को सर जार्ज ग्रियर्सन राष्ट्र-मापा क्यों मान लेते ? उन्हें कुछ हक का भी तो ख्याल रखना था ! आखिर उन्होंने भारत का भी तो नमक खाया था और नमक-हरामी को अपराध समझते थे। फिर किसी की दाद के लिये उसका गला क्यों घोटते और क्यों बरवस ऐन गैन' को उसकी वाणी मान लेते ? भारत का 'शीन काम दुरुस्त करना उनके बूते के बाहर था । अच्छा, यह तो हमने देख लिया कि वस्तुतः सर जार्ज ग्रियर्सन ने भी हिंदी यानी हिंदुस्तानी को ही राष्ट्र-भाषा माना है, उर्दू यानी हिंदुस्तानी को नहीं। • अव तनिक इतना और भी स्पष्ट देख लीजिए कि हिंदी-उर्दू में इ.ख्तलाफ़ बल्कि सिर्फ इन्तयाज़ रखने पर भी हमारा दावा झूठ नहीं हो सकता। स्वयं सर जार्ज ग्रियर्सन ने 'इ.ख्तलाफ और इस्तयाज' को रहने देकर हिंदी को समूचे 'शुमाली हिंद' की मुल्की जवान कहा है ! फिर इस तरह उनकी दुहाई देकर मनमानी सनद से सरल जनता को ठगने की हकपरस्ती कैसी ? हिंदी और उर्दू में बड़ा भेद है। प्रकृति या वोल के विचार से तो उर्दू, हिंदी है पर प्रवृत्ति की दृष्टि से वह हिंदी की चहेती सौत है। हिंदी को मिटाने के लिये फारसी ने जो मायावी हिंदवी रूप धारण किया उसी का नाम आज उर्दू है। उर्दू हिंदी-रूप में छिपी फारसी है जो फारसी के लद जाने पर देश में चालू की गई। देश से उसे कोई प्रेम नहीं। वह फारस-अरक और न जाने कहाँ की दूती है। उसका ध्येय कुछ और ही है।