पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

-511 राष्ट्रभाषा का निर्णयः "यह जवान बादशाही वाजारों में मुरव्वज थी, इस वास्ते उसको जवान उर्दू कहा करते थे और बादशाही अमीर-उमरा इसको बोला करते थे। गोया कि हिंदुस्तान के मुसलमानों की यही जवान थी।"--असारुस सनादीद, प्रथम. संस्करण, बाब चौथा सन् १८४८ ई०। 'बादशाही अमीर-उमरा' और 'हिंदुस्तान के मुसलमान एक ही चीज हैं। प्रसादवश नहीं, सोच-विचारकर सर सैयद ने यह निर्णय किया था और इस बात को स्पष्ट कर दिया था कि हिंदुस्तान की 'रजील को, जो अपने को मुसलमान कहती हैं, 'मुसलमानों में नहीं हैं। उनकी कमेटी का दावा है- "मुसलमान इस मुल्क के रहनेवाले नहीं हैं। आला या औसत दरजः के लोग अपने मुल्क से यहाँ आकर नाबाद उनकी औलाद ने हिंदोस्तान की बहुत सी ज़मीन को अावाद किया और कुछ यहाँ के लोगों को, जो इस मुल्क की अदना कौमों में से न थे, अपने साथ शामिल कर लिया। (रूवदाद इजलास सन् १८७२ ई० पृ० ४) विस्मित न हूजिए, आगे चलकर श्रापको स्पष्ट ज्ञात हो जायगा कि अहमदी दुनिया में 'मुसलमान का असली अर्थ क्या है। सर सैयद अहमद खाँ का दावा है। "इंगलिश नेशन हमारे मकतूह मुल्क में आई मगर मिस्ल. एक दोस्त के न कि बतौर दुश्मन के ...... पस कोई वजह नहीं कि हम में और उनमें सिन्पथी न हो। सिम्पथी से मेरी मुराद बिरादराना व दोस्ताना सिम्पथी है। (यात जावेद में पृ. . रे