भाषा.का.प्रश २४८-४६ पर अवतरित; मुसलिम यूनिवर्सिटी संस्करण सन् १६२४ ई०): सारांश यह कि उदृ वास्तव में फातेह (विजयी) मुसल- मानों की भाषा है न कि हिंद के मकतूह (विजित ) मुसलमानों की भाषा। हिंदी मुसलमानों की जवान हिंदी है न कि उर्दू या प्रच्छन्न फारसी। हिंदी-उर्दू के विवाद में भूलना न होगा कि वास्तव में उर्दू हिंद के जित-जयी मुसलमानों या भारत के जय- चंदों की भाषा है। वह कभी हमारी राष्ट्र-भाषा हो ही नहीं सकती। हमारी से हमारा तात्पर्य उन जीवों से है जिनके वाप-दादे न जाने कितने दिनों से इस देश को अपना घर सम- झते और इसकी मर्यादा तथा गौरव के लिये कण-कण जूझते आ रहे हैं। हम उन्हें हिंदी कहते हैं। आप चाहे हिंदू कहें या मुसलमान, इससे हमें कुछ बहस नहीं। बहस इस बात से . है कि उर्दू उनकी मुल्की जवान नहीं। हिंदी उनकी मातृभाषा है। वहीं हिंद की असली राष्ट्र-भाषा है। हाँ, उर्दू फातेहों की जवान है मफतूहों की भाषा नहीं। स्पष्ट है कि हिंदी मुसलमान भी मकतूह या मफतूहों की संतान हैं, कुछ फातेह या फ्रातहों के उत्तराधिकारी नहीं '. अतः उर्दू उनकी भी भाषा नहीं। निदान उन्हें भी वही करना चाहिए जो उनके सहधर्मी "फारस या तुर्क कर रहे हैं। अरे नकल भी करें तो स्वाधीन तुर्को की, न कि पराधीन अर्ध-मित्रों की।