पृष्ठ:भाषा का प्रश्न.pdf/६९

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भाषा का प्रश्न प्रश्न उठता है कि 'हम क्या करें। अपनी राष्ट्र-भाषा को हिंदी कहें या हिंदी-हिंदुस्तानी या हिंदुस्तानी अथवा वर्गविशेष की सनद के लिये उसे उर्दू के रूप में स्वीकार करें ?.. प्रसन्नता की बात है कि मुसलिम संस्कृति के प्रकांड पंडित तथा उर्दू अद्व के अच्छे ज्ञाता मौलाना सैयद सुलेमान' नदवी ने सप्रमाण सिद्ध कर दिया है कि हमारी भाषा का नाम उर्दू नहीं बल्कि हिंदोस्तानी ही होना चाहिए। इतना ही नहीं, इससे भी कहीं बड़ी और अपूर्व बात यह हुई कि उर्दू के प्राण डा० मौलाना अब्दुल हक साहब ने भी इस पर ध्यान दिया है और उर्दू की जगह हिंदोस्तानी को पसंद किया है। इस दशा में एकता चाहनेवालों को लालच होगा कि हिंदी' नाम को मिटाकर हिंदोस्तानी को ग्रहण कर लिया जाय और व्यर्थ. के विवाद से पिंड छुड़ाया जाय। अस्तु, हमारा कर्तव्य है कि हम उनकी इस मृगमरीचिका. का उद्घाटन करें और संक्षेप में यह दिखा दें कि आखिर इसका भेद क्या है। १-२६ मार्च सन् १९३७ ई० को अलीगढ़ में उक्त मौलाना साहब ने 'आल इंडिया एजुकेशनल कान्फ्रेंस के उर्दू-विभाग में 'हमारी ज़बान का नाम' नामक एक व्याख्यान दिया जिसमें पुष्ट प्रमाणे के आधार पर सिद्ध कर दिखाया कि किसी भी दृष्टि से 'हमारी जबान' : का नाम 'उर्दू' ठीक नहीं पड़ता। उसका नाम हिंदोस्तानी होना चाहिए। उक्त लेख 'अंलीगढ मैगजीन' जुलाई सन् १६३७ में प्रकाशित हो गया है।